वाराणसी, काशी या बनारस का नाम सुनते ही मन को एक अध्यात्मिक शांति सी महसूस होती है। यहाँ पर राम भक्तों का एक विचित्र किंतु सत्य ‘राम रमापति बैंक’ है, जहाँ राम के भक्तों को राम नाम का कर्ज दिया जाता है। लोग अपनी मन्नतें पूरी करने और अपने बिगड़े कामों को सफल बनाने के लिए राम नाम का कर्ज लेते हैं। इस बैंक की खासियत यह है कि यहाँ से किसी को रुपये पैसै नहीं वरन राम का नाम कर्ज के रूप में मिलता है।
राम भक्त यहाँ रामनवमी के दिन सवा लाख राम नाम का कर्ज लेता है लेता है और आठ महीने दस दिन तक प्रतिदिन (यानी 250 दिन तक ) 500 बार राम नाम लिखकर, उसे इसी बैंक में जमा कराता है। इस प्रक्रिया लखौरी कहलाती है। इस बैंक में अब तक 18 अरब से ऊपर राम नाम के रूप में जमा हो चुके हैं। यहाँ से कर्ज लेने वाले एक भक्त को सवा लाख बार राम का नाम लिखना पड़ता है, जिसके लिए उसे बैंक से राम नाम की मोहर लगा कागज, लकड़ी की कलम और लाल स्याही बैंक की तरफ से मुफ्त में दी जाती है। राम नाम लिखने के दौरान लिखने वाले भक्त को मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज व अशुद्ध और झूठा भोजन, मृत्युभोज के भोजन से लेकर किसी भी तरह के तामसिक भोजन से दूर रहना होता है। इस कर्ज को लेने वाले को कर्ज की निर्धारित तिथि पर ही पूरी करना पड़ती है। कर्ज पूरा होने के बाद राम नवमी के दिन इसी कर्ज को लेने का विशेष महत्व है। इस कर्ज को लेने के बाद कई लोगों ने शराब और माँस का तो हमेशा हमेशा के लिए त्याग किया ही लहसुन, प्याज भी छोड़ी दी।
इस बैंक की स्थापना 1926 में हुई थी, तब से अब तक लाखों भक्त बैंक से राम नाम का कर्ज ले चुके हैं और कर्ज चुकाने के बाद उनकी मन्नतें भी पूरी हुई है मजे की बात यह है कि विदेशी सैलानी भी इस बैंक से कर्ज लेते हैं और चुकाते भी हैं। इसकी कार्य प्रणाली एकदम किसी आधुनिक सरकारी या निजी बैंक जैसी है। इसमें कर्मचारी भी हैं, कर्ज का हिसाब-किताब भी रखा जाता है, और जमा धन से लेकर कर्ज लेने और चुकाने तक का हिसाब रखा जाता है।
रविवार, 17 मई 2009
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