दुनिया का सबसे प्राचीन शहर बनारस अपनी विविधताओ के कारन सदा से ही लोगो में जिज्ञासा का कारन बना रहा है ,और शायद इसी लिये हर माह यहाँ लाखो देशी विदेशी लोग इस अलौकिक नगरी में छुपे अज्ञात रहस्य को जानने चले आते है ,कोई भी मौसम क्यो न हो यहाँ आने वालो की तादाद रूकती नही ,यहाँ की तंग गलियों संकरे रास्तो और उबड़ खाबड़ सडको पे लोगो का हुजूम हर दिन पहले से ज्यादा दिखाई देता है । धर्म ग्रंथो की माने तो बनारस कभी समाप्त होने वाला शहर नही है क्योकि ये भगवन शंकर के त्रिशूल पे टिकी हुई है मान्यताओ के अनुसार यहाँ मरने पे सीधा स्वर्ग मिलता है और यहाँ लगभग ८३ करोड़ देवता वास कारते है यहाँ यमराज को भी आना मना है बल्कि यहाँ यक्ष ,मौत के बाद आत्मा को स्वर्ग ले जाते है ।
ये बाते कितनी सच है ये तो नही मालूम लेकिन इस शहर के प्रति लोगो की आस्था देख भला कौन यह मानेगा की उपरोक्त बाते सच नही है ,।
बनारस में इतनी विविधताओ के बिच एक बात बहुत कचोटती है वो है यहाँ की गंदगी ,गंगा के प्रति लोगो में उदासीनता जिसके कारन ये शहर जहा गन्दगी का अम्बार बन गया है वही गंगा का पानी पिने को कौन कहे नहाने लायक नही रह गया है ,वो तो भला हो उन श्रधालुओ का जो गंगा में न सिर्फ़ नहाते है बल्कि गंगा जल अपने घरो में भी ले जाते है जिनसे गंगा की प्रसगिकता बनी हुए है । गंगा के घाट जिसके किनारे बैठ तुलसीदास ने रामचरित मानस लिख डाली ,जहा आकर शंकराचार्य भी यही के हो गए ,कबीरदास ने भक्ति का पाठ padahya ,भारतेंदु बाबु ने हिन्दी में खड़ी बोली की नीव डाली ,चंद्रशेखर आजाद ने आजादी की दुधुभी बजायी ,बिश्मिल्लाह खान ने शहनाई से सांप्रदायिक एकता का सुर सुनाया लेकिन आज का बनारस देख कर लगता नही की इसमे कुछ khas है ।
आख़िर बनारस के लोग अपने इस शहर को ऐसे pahchan क्यो देना chate है की bahar के लोग इसे गन्दगी के अम्बार वाला शहर pradhushit गंगा का शहर कहे ।
सोमवार, 18 मई 2009
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