शनिवार, 21 नवंबर 2009

सावधान ! आपके हाथ में है मौत का थैला .


हम और आप रोजाना अपनी जरुरत के सामान बाजार से लाने हेतु पोलीथिन बैग का उपयोग करते है । आज से तीन दशक पूर्व जब इसके प्रयोग में तेजी आई थी ,शायद हमें इस बात का अंदाज भी nahi था की आगे चलकर यही पोलीथिन हमारे लिए बड़ी समस्या ban जाईगी ।

आप और हम जिस महा नगर में निवास करते है वह आज पोलीथिन के दुष्प्रभाव से दम तोड़ रहा है ।

इसके किए जिम्मेदार हम आप और हम सबकी लापरवाही ही है ।


हमारी इस लापरवाही और अज्ञानता का सबसे अधिक खामियाजा मूक जानवर विशेषकर हमारी संस्कृति की प्रतिक गायो को भुगतना पड़ता है । हम अपने घर के कचरे को पोलीथिन में कर सड़क पर तोफेक देते है मगर हमें ये नही मालूम होता की खतरों से अनजान येजन्वर इन खाद्य सामग्रियो को खाने के दौरान पोलीथिन भी खा जाते है जो इनके आत में जाकर फस जाता है और जानवरों की मौत हो जातीहै।


इसके अतिरिक्त हमारे घरो में और व्यापारिक प्रतिष्ठानों से यही मुसीबत का थैला जब बहार निकलता है तब यह महानगर के पहले से ही जर्जर पड़े नालियों में जाकर अवरोधक का काम करता है और फ़िर शुरू होता है इस निर्जीव सेदिखने वाले पोलीथिन का सजीव तांडव , जल जमाव , जल बहाव में अवरोध और संक्रमित बीमारियो के रूप में । इसके आलावा कूड़े के ढेर में पड़े पोलीथिन जो कभी न सड़ने गलने के कारन वर्षो पड़ा रह कर प्रदुषण फैलता है को जला दिया जाता है और लोगो को लगता है की समाप्त हो गया पोलीथिन नाम का दुश्मन ,लेकिन क्या आपको ये पता है की पोलीथिन को जलने से जो गैस निकलती है वो ख़ुद इंसान के लिए कितनी खतरनाक होती है ,ये गैस अत्र शोध कैंसर और दमा जैसे जानलेवा बीमारिया फैलाती है ,


इन सब दुश्परिनामो को देखकर यदि ये कहा जाए की जिस पोलीथिन में आप सामान लेकर आते है वो मौत का ऐसा थैला है जो शायद आपको तो बक्श दे मगर पर्यावरण को जिस तरह दूषित कर रहा है वो आपके भावी पीढ़ी आपके बच्चे के लिये असमय मौत और विकलांगता भरे जीवन का आधार जरुर तैयार कर रहा है ।

फ़ैसला आपको करना है , आप अपनी पीढ़ी को बचाना चाहते है या बर्बाद करना ,यदि बचाना चाहते हो तो तय कीजिये आज से पोलीथिन का इस्तेमाल बंद । और यदि बर्बाद करना चाहते है तो निसंदेह उठा लीजिये मौत के इस थैले को जिसका नाम है पोलीथिन ।

--डा. दीप्ती

वाराणसी

सोमवार, 13 जुलाई 2009

Paper or plastic — what’s the greener choice?

Would you like paper or plastic? It's the question food shoppers are asked every day — a simple choice that even environmentally conscious shoppers at Whole Foods find confusing.
"I generally pick paper because it's more protective of the environment," one shopper tells us.
But all too often, convenience rules.
you caught me on a plastic day," another shopper says. "Now I feel guilty."But should she?
Consumers find themselves between a rock and a hard place when it comes to paper or plastic. To find out what is best to do in the grocery store, we turned to Allen Hershkowitz of the Natural Resources Defense Council.
"It depends on where you live," he says.
Plastic bags threaten wildlife along the coasts, so if that's where you call home, Hershkowitz says the choice should be paper. In the heartland, he says it's plastic.
"I just assumed paper was the better choice — more environmentally friendly choice," our guilty shopper says.
But people don't realize how big a footprint the paper industry has.
Here's how paper and plastic stack up side by side:
To make all the bags we use each year, it takes 14 million trees for paper and 12 million barrels of oil for plastic. The production of paper bags creates 70 percent more air pollution than plastic, but plastic bags create four times the solid waste — enough to fill the Empire State Building two and a half times. And they can last up to a thousand years.
Plastic, because it's cheaper to produce, is the overwhelming choice of grocery stores across the nation — the average family of four uses almost 1,500 of these a year. San Francisco is limiting consumers' freedom of choice, allowing only biodegradable plastic bags, which break down over months rather than hundreds of years.
For both types of bags, the environmentalist mantra is the same — reuse and recycle. But the best choice, they say, is cloth or canvas, and BYOB — bring your own bags.

सोमवार, 6 जुलाई 2009

Plastics - all kinds

Plastics - all kinds
I learnt today that sometimes remnants of plastic can be found even in breast milk! Of course it depends on the environment that the mother is in, probabaly one that is hugely affected by plastic pollution, like some beaches in Hawaii. But to imagine that the legacy of the plastics pollution has reached such levels! The first taste of life for a new born infant comes polluted.
The plastics problem doesn't just end with plastic bags. It is related to a lot of issues and generally with the way we human beings have built our lives and culture. There are other dangerous plastics pollution such as plastic bottles - the top spot going to the plastic water bottle that is widely available even in the most remote corners of India today.
It is true that the problem is bigger than us, but it is also true that we are of course the cause, eash one of us, one by one, with each plastic bag that we accept. Recycle is only a small part of the solution, this problem needs a paradigm shift. It is possible to shift towards habits, products and materials that are environment friendly. The Small Steps inititative is one example and we are indeed taking small steps all over the world as there are similar initatives being promoted in UK, USA and Australia.
The old and generic saying keeps coming back to me....A stitch in time...saves nine...
http://smallsteps.in/node/49

मंगलवार, 26 मई 2009

ऐसा है प्लास्टिक

क्या आपको पता है प्लास्टिक बनने में जानवरों की हड्डियों का इस्तेमाल होता है
पूजा पाठ में प्लास्टिक का इस्तेमाल पूजा को खंडित करता है
पूजा का सामान आप उस पोलीथिन में लाते है जिसे बनने में हड्डियों का इस्तेमाल होता है
पोलीथिन के गिलास और कप में चाय या कोई गरम बस्तु खाने पिने से कैंसर हो जाता है
पोलीथिन वातावरण को प्रदूषित करता है और बीमारिया फैलाता है
आपका फेका पोलीथिन खाने से हर साल २२०० पशुओ की मौत हो जाती है
पोलीथिन से दुनिया में अनचाहे परमाणु विस्फोट का खतरा बना हुआ है क्योकि मिटटी में
दबा करोडो टन पोलीथिन से पृथ्वी के अन्दर जहरीली गैस का भंडार बन रहा है

गुरुवार, 21 मई 2009

एक प्रयास आपका ....

बनारस में पोलीथिन के उपयोगिता को कम और लगभग समाप्त कैसे किया जा सकता है ,

यह एक जटिल और काफी हद तक किसी सनकी आदमी का प्रश्न कहा जा सकता है ,लेकिन हम कुछ बनारसियों को लगता है ऐसा हो सकता है बसर्ते हम अपने शहर को किराये का घर न समझ कर उसे ख़ुद के पूर्वजो द्वारा बनाया गया एक घरौदा समझे जिसे उन्होंने हमारे लिए बनाया बसाया था ,जिस दिन हम ऐसा सोच लेगे उसी दिन हमें लगेगा की पोलीथिन में सामान लेने ले जाने का हमारा ये शौक हमारे शहर को की कदर दूषित कर रहा है और शायद आप पोलीथिन लेना बंद कर देगे ,लेकिन आज के दौर में हम अधिकतर काम पोलीथिन के इर्दगिर्द ही करते है जैसे घर का सामान लाना सब्जी लाना ,दूध तो पोलीथिन पैकेट में ही आता है बहुत से खाने पीने के सामान पोलीथिन में ही पैक कर आते है ,आख़िर कैसे बचा जाए इस पोलीथिन से ।

थोड़ा मुश्किल जरुर है लेकिन असंभव तो नही है कम से कम यदि झोले में सामान खरीदने की आदत आप डाल ले तो आपने बहुत हद तक अपने शहर को मनो पोलीथिन से बचा लिया ,और आपका घरौदा साफ सुंदर बना रहेगा । लेकिन फैशन के इस दौर में झोला लेकर बाजार जाकर कोई भला झोला छाप क्यो बनेगा ,अरे भाई अब तो ऐसे झोले बन रहे है जिसे आप लेकर चलना अपने लिये फैशन मानेगे और यकीनन ऐसे झोले यदि आप देख ले तो जरुर लेना चाहेगे ,निचे के तस्वीर में जो झोला या बैग आप जो भी कहे देख रहे है उसे एक sanstha द्वारा इस तरह बनाया गया है की इसे आप कमर में लटकाकर सेल फ़ोन की तरह रख सकते है और दुकान पे जाकर खोलेगे तो इसमे १० किलो से ज्यादा सामान आप भर लेगे और फिर घर में सामान रख कर इसे फिर से बेल्टवाले हुक में लटका लिया ,इसका उपयोग कर आप बहुत हद तक पोलीथिन से अपने घर को बचा सकते है ,आप चाहे तो इस झोले को ले सकते है ,हम आपको ये भी बता दे की ये झोला हम बेचते नही है बल्कि पोलीथिन त्यागने संकल्प लेने वाले को गिफ्ट में देते है और अपेक्षा करते है की वो यदि इसके बदले कोई सहयोग करना चाहते है तो जरुर करे क्योकि इस बैग के मध्यम से बनारस में महिलाओ को रोजगार मिला है । बैग को लेने के लिये आप Banaras2020@gmail.com पे संदेश भेज सकते है इस बैग के बारे में और अधिक जानकारी के लिये http://smallsteps।in/ पे लोग करे
दीप्ती सिंह --वाराणसी









सोमवार, 18 मई 2009

ये बनारस है

एक शहर है
कहते है इस शहर में कोई भी भूखा नही सोता
इस शहर में कोई मरता नही
क्योकि ,
इस शहर में यमराज को आना मना ही है ,
इस शहर में लोग ख़ुद से मोक्ष पाने चले आते है ,
कहते है यहाँ मरने पे स्वर्ग मिलता ।
इस शहर में लोग ३६५ दिन त्यौहार मनाते है और मस्ती करते है
दुःख यहाँ दीखता नही ,
सुख यहाँ टिकता नही
लेकिन ये शहर रुकता नही
हर गली में मन्दिर है ,हर मुहल्ले में मस्जिद
चारो छोर पे गिरिजा ,और गुरूद्वारे ।
कही पंजाब तो कही गुजरात ,कही बंगाल और महराष्ट्र, और कही मद्रास इस शहर में दीखता है
फैशन के दौर में भी, एक गमछे में ही ये शहर जी लेता है
इतना ही नही नही ये शहर भारत रत्तन भी देता है
फटी धोती और सफारी शूट एक ही दुकान पे चाय पिता है
इस शहर का नाम पूछने पे
कोई इसे काशी कोई वाराणसी और कई बनारस कहता है
लेकिन अपने शहर की परिभाषा हर आदमी कुछ यु बताता है

खाक भी जिस जमी का पारस है वो शहर हमारा बनारस है

--दीप्ती सिंह , वाराणसी