आप और हम जिस महा नगर में निवास करते है वह आज पोलीथिन के दुष्प्रभाव से दम तोड़ रहा है ।
इसके किए जिम्मेदार हम आप और हम सबकी लापरवाही ही है ।
हमारी इस लापरवाही और अज्ञानता का सबसे अधिक खामियाजा मूक जानवर विशेषकर हमारी संस्कृति की प्रतिक गायो को भुगतना पड़ता है । हम अपने घर के कचरे को पोलीथिन में कर सड़क पर तोफेक देते है मगर हमें ये नही मालूम होता की खतरों से अनजान येजन्वर इन खाद्य सामग्रियो को खाने के दौरान पोलीथिन भी खा जाते है जो इनके आत में जाकर फस जाता है और जानवरों की मौत हो जातीहै।
इसके अतिरिक्त हमारे घरो में और व्यापारिक प्रतिष्ठानों से यही मुसीबत का थैला जब बहार निकलता है तब यह महानगर के पहले से ही जर्जर पड़े नालियों में जाकर अवरोधक का काम करता है और फ़िर शुरू होता है इस निर्जीव सेदिखने वाले पोलीथिन का सजीव तांडव , जल जमाव , जल बहाव में अवरोध और संक्रमित बीमारियो के रूप में । इसके आलावा कूड़े के ढेर में पड़े पोलीथिन जो कभी न सड़ने गलने के कारन वर्षो पड़ा रह कर प्रदुषण फैलता है को जला दिया जाता है और लोगो को लगता है की समाप्त हो गया पोलीथिन नाम का दुश्मन ,लेकिन क्या आपको ये पता है की पोलीथिन को जलने से जो गैस निकलती है वो ख़ुद इंसान के लिए कितनी खतरनाक होती है ,ये गैस अत्र शोध कैंसर और दमा जैसे जानलेवा बीमारिया फैलाती है ,
इन सब दुश्परिनामो को देखकर यदि ये कहा जाए की जिस पोलीथिन में आप सामान लेकर आते है वो मौत का ऐसा थैला है जो शायद आपको तो बक्श दे मगर पर्यावरण को जिस तरह दूषित कर रहा है वो आपके भावी पीढ़ी आपके बच्चे के लिये असमय मौत और विकलांगता भरे जीवन का आधार जरुर तैयार कर रहा है ।
फ़ैसला आपको करना है , आप अपनी पीढ़ी को बचाना चाहते है या बर्बाद करना ,यदि बचाना चाहते हो तो तय कीजिये आज से पोलीथिन का इस्तेमाल बंद । और यदि बर्बाद करना चाहते है तो निसंदेह उठा लीजिये मौत के इस थैले को जिसका नाम है पोलीथिन ।
--डा. दीप्ती
वाराणसी